दिव्‍य चिकित्‍सा भवन की चिकित्‍सा व्‍यवस्‍था

आयुर्वेद के दो उददेश्‍य हैं। प्रथम स्‍वस्‍थस्‍य स्‍वास्‍थ्‍य रक्षणम् और द्वितीय आतुरस्‍य विकारप्रशमनम।। अर्थात स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति के स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा करना और रोग का निवारण करना। इन दोनों उदेश्‍यों की पूर्ति हेतु आयुर्वेद चिकित्‍सा के आविष्‍कारकों ने तीन महत्‍वपूर्ण सू्त्र वर्णित किये हैं -

  • निदान परिवर्जन (Avoldthe causative factor)

  • संशोधन चिकित्‍सा (Purification Therapy)

  • संशमन चिकित्‍सा (Palliative Manegment Druge)

इसमें संशोधन चिकित्‍सा का महत्‍व अधिक है। संशोधन क्रिया द्वारा निकल जाने से शमन चिकित्‍सा (Palliative Management Druge) का बहुत ही अच्‍छा प्रभाव होता है। संशोधन चिकित्‍सा से स्‍वस्‍थ (Cure) हुए रोगों में रोगी के शरीर में दीर्घ कालीन लाभ उपस्थित रहते हैं।

पंचकर्म द्वारा की गयी संशोधन चिकित्‍सा से रोगोत्‍पादक दोष, मल और विषाक्‍त पदार्थों का शरीर से निर्हरण होता है और व्‍यक्ति स्‍वस्‍थ होता है।

पंचकर्म द्वारा व्‍यक्ति के शरीर का संशोधन (Purification) किया जाता है पश्‍चात रसायन चिकित्‍सा द्वारा शरीर में हुयी क्षति की पूर्ति का उपक्रम किया जाता है।

आयुर्वेद में भिन्‍न - भिन्‍न रोगों में रोगी के बल, काल, वय, सत्‍व अग्नि आदि परीक्ष्‍य भावों की अच्‍छी प्रकार से परीक्षा करके तदुपरान्‍त आवश्‍यक पंचकर्म चिकित्‍सा का रोग के समूल नाश हेतु विधान बताया गया है।

अविशुद्धे शरीरे हि युक्‍तो रसायनो विधि।
वाजीकरो व मलिने वस्‍त्रे रग इवाफला।।
अ0ह0उ039-4।।

अर्थात् पंचकर्म द्वारा बिना शरीर शोधन कर पश्‍चात् रसायन (Rejuvenater of Natural Immuniser) चिकित्‍सा का शरीर पर पूर्ण उपयोगी प्रभाव ठीक उसी प्रकार से नहीं होता हो जाता है जैसे मलिन वस्‍त्र में रंग का प्रभाव अच्‍छी प्रकार नहीं हो पाता।

व़ास्‍तव में एलोपैथ की जितनी दवाइयॉं हैं वे जनसामान्‍य की इस मानसिकता को ध्‍यान में रखकर बनायी गयी हैं कि व्‍यक्ति को तुरन्‍त राहत का एहसास कैसे कराया जाय। किन्‍तु अब इन दवाओं का मायाजाल टूटने लगा, दवाओं के लगातार प्रयोग से घातक दुष्‍परिणाम दिखायी देने लगे। यह देखकर बुद्धिजीवी वर्ग एलोपैथिक चिकित्‍सा से घबराने लगा, क्‍योंकि लगातार दवाओं के प्रयोग से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती जाती है परिणामत जीवनीय शक्ति दुर्बल होती जाती है।

आयुर्वेद की "पंचकर्म" ऐसी थैरापी है जो शरीर में एकत्र मल-अपवर्ज्‍य द्रव्‍यों को बाहर करती है जिससे शरीर की जीवनीय शक्ति बलवान् होने लगती है और रोग का निवारण बडी तेजी से होने लगता है।

पंचकर्म में निम्‍मलिखित पॉंच क्रियायें होती हैं।

  • वमन (Medicated Vometing)

  • विरेचन (Medicated Purging)

  • निरुह वस्ति (Medicated Enema)

  • अनुवासन वस्ति

  • नस्‍य (Medicated Nosal Drop)

ये क्रियायें सम्‍पूर्ण शरीर को निर्विष (D Tox) बनाती हैं। दिव्‍य चिकित्‍सा भवन में ई सन् 2000 में "वैद्य एम पी तिवारी" जी के निर्देशन में पंचकर्म चिकित्‍सा प्रारम्‍भ की गयी।

दिव्‍य चिकित्‍सा भवन में पंचकर्म कराने के लिए प्रशिक्षित स्‍टॉफ, पुरुष महिला नर्सेज (उपचारक) हैं।

दिव्‍य चिकित्‍सा भवन में पंचकर्म हेतु 500 स्‍क्‍वायर फिट का बडा "पंचकर्म थियेटर" है जिसमें महिला और पुरुष के लिए प्रथक्-प्रथक् केबिन हैं। जहॉं पुरुष के लिए पुरुष उपचारक और महिलाओं के लिए महिला उपचारक हैं।

दिव्‍य चिकित्‍सा भवन में कब पहुँचे

अधिकांशत फोन पर यह पूछा जाता है कि इलाज हेतु "दिव्‍य चिकित्‍सा भवन" कब पहुँचें या कब मरीज को लेकर आयें। इस जिज्ञासा का उत्‍तर है कि "दिव्‍य चिकित्‍सा भवन" एक सम्रद्ध् आयुर्वेद हास्पिटल है और यह 24 घण्‍टे खुला रहता है।

यहॉं आने के लिए फोन पर पूछने की जरुरत नहीं है। किसी भी दिन और किसी भी समय रोगी को लाया जा सकता है। यदि निजी वाहन से कोई रात में भी दिव्‍य चिकित्‍सा भवन पहुँचता है तो उसे रात में रुकने का स्‍थान दिया जाता है और प्रात काल 9 बजे ओपीडी खुलते ही चिकित्‍सा कार्य शुरु कर दिया जाता है।

हॉं इस सम्‍बन्‍ध में एक विशेष सलाह अवश्‍य दी जाती है कि रोगी की चिकित्‍सा में जितनी देरी करेंगे या इधर-उधर भटकेंगे रोग उतना ही गम्‍भीर होता जाएगा। इसलिए जैसे ही रोग होने का पता चले तुरन्‍त ही रोगी को लेकर दिव्‍य चिकित्‍सा भवन पहुँचना चाहिए।

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