"किडनी फेल्योर" को आयुर्वेद में व्रक्क सन्यास या व्रक्काकर्मण्यता नाम से जाना जाता है। सन् 2004 से "दिव्य चिकित्सा भवन" में "किडनी फेल्योर" पर निरन्तर प्रयोग, अनुसंधान और चिकित्सा कार्य चल रहा है।
हर साल लगभग 500 से भी अधिक रोगी "दिव्य चिकित्सा भवन" में भर्ती होकर चिकित्सा लाभ प्राप्त करते हैं और इससे अधिक किडनी फेल्योर रोगी यहॉं की ओपीडी में आकर लाभ उठाते हैं।
क्या एलोपैथ में किडनी फेल्योर की चिकित्सा है?
देश का दुर्भाग्य है कि अंग्रेजी शासनकाल में डाली गयी नींव का आज भी जनमानस पर ऐसा गहरा प्रभाव है कि चाहे बीमारी छोटी हो या बडी कोई भी व्यक्ति सबसे पहले एलोपैथिक चिकित्सा में ही जाता है।Read More
मै रामप्रकाश वर्मा तीन वर्ष से डायबिटीज का पेसेन्ट हूँ। लगातार एलोपैथिक दवाओं के प्रयोग से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) का मरीज हो गया। दोनों बीमारी की एलोपैथिक दवा लेने से गुर्दे खराब हो गए। मैं मिक्स इंसुलिन 4 यूनिट सुबह तथा 6 यूनिट शाम को लेता तथा सिम्पल वाला इन्सुलिन बारह यूनिट सुबह सात इन्सुलिन रात को लेता था। हमारे दुकान के मालिक नफीस अहमद का किडनी फेल्योर का इलाज दिव्य चिकित्सा भवन में चल रहा था। उनके जरिये हम किडनी का इलाज कराने वहॉं पहुँचे, जहॉं हमें अंतरग विभाग में रखकर पंचकर्म चिकित्सा (प्यूरीफिकेसन थिरेपी), योग-प्राणायाम एवं पथ्य आहार सेवन करने की सलाह दी गयी। वहॉं तीन दिन की दवा से ही हमारी इन्सुलिन बन्द हो गई और यूरिया, क्रेटेनाइन भी लगातार डाउन हो रहा है। इन्सुलिन के साइड इफेक्ट से शरीर में काफी दिक्कतें बनी रहती थीं लेकिन आयुर्वेदिक इलाज से इन्सुलिन तो दूर हो गया साथ ही साथ शारीरिक रुप से भी मै काफी अच्छा महसूस करता हूँ। मैं डॉक्टर साहब का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूँ जिन्होने रोज दिलाई।
मेरा नाम उमाशंकर जायसवाल है। मेरी उम्र 58 वर्ष है और मैं गनेशगंज मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) का रहने वाला हूँ। मुझे 12 वर्ष से सुगर था जिसके कारण अतिमूत्रता और लगातार कमजोरी रहती थी। बनारस के विवेक हॉस्पिटल में दिखाने पर उन्होंने कुछ दवाइयॉं दी उससे कुछ खास सुधार न होने पर हमने मेदान्ता हॉस्पिटल में रुटीन चेकअप करवाया तब सुगर के साथ-साथ ब्लडप्रेशर और किडनी फेल्योर का पता चला। वहॉं सुगर कट्रोल के लिये इन्सुलिन 15 यूनिट सुबह और 15 यूनिट शाम को देने को कहा। इतना देने के बावजूद फास्टिंग ब्लड सुगर (FBS) 200 mg/dl के आस पास था। तब डॉक्टर ने इन्सुलिन की डोज बढा दी। उन्होंने मेरी इन्सुलिन सुबह 28 यूनिट और शाम को 20 यूनिट कर दी। ऐसे ही इन्सुलिन की मा्त्रा बढती जा रही थी पर सुगर कट्रोल ही नहीं होता था। वह 300 से अधिक हो गया था। अपने मि्त्र के यहॉं आयुर्वेदिक पत्रिका (चिकित्सा पल्लव) में मैंने मधुमेह विशेषांक पढा। जिसे पढकर मेरे मन में भी विश्वास जगा कि मैं भी आयुर्वेदिक इलाज ले के देखता हूँ। जब मैंने दिव्य चिकित्सा भवन में इलाज शुरु किया मे तो सुगर 1 सप्ताह में कम (FBS 297) होने लगा। इन्सुलिन 6 यूनिट ना फिर 3 िदन बाद 147 हो गया। डॉक्टर ने पूरा इन्सुलिन बन्द करने को कहा। 3 सप्ताह में मेरा इन्सुलिन बन्द हो गया और अब सुगर बिना इन्सुलिन के कट्रोल में है। मैं सच्चे भाव से वहॉं के डॉक्टर का शुक्रिया अदा करता हूँ।
मेरा नाम अमिताभ तिवारी है। मैं जनपद-जौनपुर उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मेरी माता जी श्रीमती सविता तिवारी जी को लगभग दस साल से सुगर है। मैने इनका इलाज बी एच यू वाराणसी (उत्तर प्रदेश) से करवाया जहॉं पर डाक्टरों ने इसकी इन्सुलिन के साथ कुछ दवाइयॉं चलानी शुरु कर दी जिससे इनके स्वास्थ्य में शुरु में काफी सुधार हुआ लेकिन कुछ समय बाद फिर दिक्कत शुरु हो गयी। ऑंख से ठीक से दिखाई न देना, सॉंस फूलना, खून की कमी, धीरे-धीरे उल्टियॉं भी शुरु हो गईं। मैं एक बार फिर माता जी को लेकर बी एच यू पहुँचा। वहॉं डॉक्टर्स ने के एफ टी जॉच कराई जिसमें यूरिया, क्रेटिनीन काफी बढा निकला, सुगर भी काफी अनियमित रहता था। कभी हाई हो जाता तो कभी हाइपो पे चला जाता था। डाक्टर भी कभी इन्सुलिन बढाते तो कभी इन्सुलिन घटाते। इस तरह माता जी का 16-16 यूनिट इन्सुलिन दोनों टाइम लगने लगा। अन्त में हम लोग निराश होकर पी जी आई लखनऊ की शरण लिए। जहॉं इनकी स्थिति और खराब देखकर हम लोगों ने इनका इलाज आयुर्वेद से कराने का निर्णय लिया। हमने सोचा कि आयुर्वेद से आराम नहीं मिला तो डायलेसिस करवायेंगे। लेकिन संयोग से ईश्वर के आशीर्वाद से हमें मुकेश शुक्ला नाम के व्यक्ति ने दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा बॉंदा के बारे में बताया। हम हर तरफ से हारे हुए दिव्य चिकित्सा भवन गए। वहॉं की दवा का माता जी पर जादू सा असर हुआ। 3 दिन में बी पी की दवा आधी हो गई, 1 सप्ताह में इन्सुलिन बन्द। आपको जानकर-बहुत खुशी होगी कि इन्सुलिन ही नहीं यूरिया और क्रेटेनीन भी अच्छा डाउन हो रहा है।
मेरी बहन (सविता तिवारी) की इन्सुलिन छूट गई। वह डायलेसिस से बच गई। यह जानने के बाद इन परेशानियों से मुक्ति दिलाने वाले हॉस्पिटल का नाम सुनते ही हमने भी वहॉं इलाज कराने का निश्चय किया। मुझे भी दस वर्ष से सुगर तथा बी पी की शिकायत थी। इसका इलाज हमने बाम्बे में श्री देवी हॉस्पिटल (कल्याण) उसके बाद संजीवनी हास्पिटल (अँधेरी) में कराया जहॉं पोटली भर अंग्रेजी गोली खानी पडती थी। फिर भी विशेष आराम नही था। 2 साल बाद डॉक्टर्स इन्सुलिन लगवाने लगे, शुरु में सुगर लेवल तीन सौ के उपर था। तब 16 यूनिट इन्सुलिन सुबह खाने के पहले तथा 14 यूनिट इन्सुलिन रात में लेता था, कभी-कभी सुगर और बढ जाता था तो इन्सुलिन की मा्त्रा बढानी पडती थी। दिन भर मेरे बेटे इन्सुलिन देकर मेरा शरीर छेदते रहते थे। जब मैं दिव्य चिकित्सा भवन में भर्ती हुआ तब मैं बहुत निराश था लेकिन जैसे ही वहॉं का इलाज शुरु हुआ मेरे शरीर में बडी तेजी से सुधार होने लगे। रोज प्राणायाम, पंचकर्म तथा पथ्य पालन से मेरे इन्सुलिन की मा्त्रा कम होने लगी और एक सप्ताह में इन्सुलिन बंद हो गई। मैं यहॉं के डॉ मदन गोपाल वाजपेयी जी का अभारी हूँ जिन्होंने मेरी और बहन की डायलेसिस और इन्सुलिन से मुक्ति दिलाई।
मेरा नाम अमिता शुक्ला है, मै लखनऊ (उत्तर प्रदेश) की निवासिनी हूँ। मेरी उम्र लगभग 55 वर्ष है। मेरी किडनी की बीमारी लगभग 15 वर्ष पूर्व शुरु हुई जब मुझे लखनऊ के पी जी आई अस्पताल में पता चला कि मेरी बाई किडनी में करीब डेढ लीटर पस है जो कि पेशाब के रास्ते थोडा बहुत आता था। उसकी वजह से पूरे शरीर में इफेक्शन फैल रहा था तब वहॉं ऑपरेशन करके पस को निकाला गया जिसमें लाखों रुपया लग गया । किडनी पूरी सिकुड गई थी। जो अल्ट्रासाउण्ड में भी दिखाई नहीं देती थी। पस वाली समस्या अभी तक मेरा पीछा कर रही है, पेशाब से पस हमेशा आता रहता है। यह कभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। करीब पिछले तीन वर्ष से यह समस्या इतनी ज्यादा हो गई कि दो बार मरते मरते बची और लाखों रुपया भी खर्च हो गया लखनऊ में। आज से 15 दिन पहले डॉक्टर ने तीन महीने एंटीबायोटिक दवा खिलाने के बाद भी जब किडनी का क्रिटीनीन (3 5), यूरिया (63 8), हिमोग्लोबिन (7), NA (130) और पेशाब में पस ठीक नही हुआ तो सलाह दी कि किडनी निकलवा लो जो खराब हो गई है। तब किसी एलोपैथिक डाक्टर से ही पता चला कि बॉंदा (पनगरा) में दिव्य चिकित्सा भवन है आप बिल्कुल ठीक हो जाओगी। मै तुरन्त यहॉं आ गई और यहॉं की पंचकर्मा क्रिया, शुद्ध् वातावरण, योगा और आयुर्वेदिक दवा जिसमें यहॉं खाने में किया जाने वाला परहेज भी शामिल है, शुरु कर दिया। करीब दो हफ्ते बाद बिल्कुल स्वस्थ्ा महसूस कर रही हूँ। भर्ती होने के 7 दिन बाद ही पता चला कि पेशाब में पस बिल्कुल नहीं है और क्रिटीनाईन भी घट गया है। 14 दिन बाद मेरा क्रिटीनीन (2 6) यूरिया (50), ua (134 4) Hb (9) हो गया है। यहॉं खाना बनाने वाले सीताराम जी, सारी नर्सें, योग टीचर स्नेहा गुप्ता, डाक्टर्स और दिव्य चिकित्सा भवन को चलाने वाले डॉक्टर मदन गोपाल वाजपेयी जी को मेरा बहुत-बहुत धन्यवाद। आप लोगों को ऐसे ही हमेशा स्वस्थ्ा रखें और खुद भी स्वास्थ्ा रहें।
अमिता शुक्ला मो- 9358760157 पता 645 A 606 जानकी विहार जानकीपुरम, लखनऊ।
मैं जुगल सिंह जौधा राजस्थान नागौर ग्राम खाऊ का निवासी हूँ। मैं राजस्थान पुलिस अजमेर में कार्यरत् हूँ। वर्ष 2011 में अचानक मेरी तबीयत खराब हुई जिसका इलाज मैंने जयपुर हार्ट हॉस्पिटल में करवाया। उसके बाद मैं बिल्कूल ठीक था। 21-11-2014 को-अचानक मेरी तबियत खराब हुई तो वापस जयपुर हार्ट हास्पिटल में आकर चेक करवाया तो वहॉं बताया गया कि दूसरी किडनी भी 70 प्रतिशत डेमेज हो गई है। उसी दौरान आयुर्वेदिक डॉक्टर बजरंग सिंह तारपुरा ने बताया की पनगरा बॉंदा में किडनी का सफल इलाज है। 03-12-2014 को श्री मान मदनगोपाल वाजपेयी डॉक्टर साहब को चेक करवाया तो बताया की बिल्कुल ठीक हो जाओगे। दिनांक 3-12-2014 से 23-12-2014 तक समयानुसार दवाईयां समय-समय पर पंचकर्म व योगा से मैं आज बिल्कुल ठीक हूँ। यहॉं सभी डाक्टर व नर्सेज का व्यवहार अच्छा व सीतारामजी का खाना बहुत अच्छा रहा संस्था में व्यवस्था अच्छी रही।
जुगल सिंह जौधा मोबाइल नं 09829800175
मै क़ष्णाकान्त द्विवेदी, उम्र 40 वर्ष, ग्राम कोनिया कला, तहसील त्योथर, जिला रीवा (मध्य प्रदेश) का निवासी हूँ। मैं वर्तमान में ब्यौहारी जिला शहडोल के पास अध्यापक पद पर कार्यरत हूँ। मुझे अक्टूबर माह से पेशाब में समस्या आ रही थी। मैने रीवा में दिखाया तो जॉंच में पता चला कि मुझे पीलिया एवं मधुमेह है। डाक्टरों के सलाह के अनुसार मै जिला चिकित्सालय में भर्ती हुआ। वहॉं 6 दिन के उपचार के बाद पीलिया में आराम हुआ परन्तु एलोपैथिक दवाइयॉं खाने के बावजूद मुझे पेशाब की समस्या बनी रही। तब मैं 26 दिसम्बर को गंगाराम केअर हास्पिटल नागपुर गया। वहॉं पर नेफ्रोलाजिस्ट को दिखाने पर ज्ञात हुआ कि मेरे दोनों गुर्दे खराब हो चुके है तथा उपचार हेतु डायलिसिस कराना आवश्यक है। वहॉं दिनांक 26-27-28 दिसम्बर को लगातार तीन दिन डायलिसिस हुआ। दिनांक 29-12-14 को डाक्टर ने बाताया कि मुझे अब प्रत्येक सप्ताह में तीन बार डायलिसिस कराना पडेगा। यह सुनकर मेरी ऑंखो के सामने अंधेरा छा गया तथा जीवन की उम्मीद समाप्त हो गई। वहॉं से लौटकर मैं रीवा आया तथा दिनांक 31-12-2014 को रीवा में भी डायलिसिस कराया। दिनांक 31-12-2014 को मेरे मित्र श्री सिधारिया चौधरी ने दूरभाष से दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा जिला बॉंदा के बारे में बताया तब मैं दिनांक 1-01-2015 को सायंकाल अपने जीजाजी के साथ पहुँचा। दिनांक 2-01-2015 को डाक्टर श्री मदन गोपाल वाजपेयीजी को दिखाया तथा उनकी सलाह के अनुसार मेरी चिकित्सा प्रारम्भ हुई। चिकित्सा में मुझे पथ्य के रुप में गाय का दूध एवं सेव दिया गया। प्रतिदिन सुबह शाम योग तथा प्राणायाम, आयुर्वेदिक औषधियॉं के साथ पंचकर्म कराया जाता रहा जिसके प्रभाव से एक सप्ताह में मेरा डायलिसिस छूट गया। दूसरे सप्ताह में जॉंच के उपरान्त अप्रत्याशित परिणाम आये तथा तीसरे सप्ताह के बॉंद में मुझे लगभग 95 प्रतिशत आराम हो गया। मैं अपने आगे के जीवन के लिए डॉक्टर वाजपेयी जी का आभारी रहूँगा तथा ईश्वर से इनके दीर्घायु की कामना करता हूँ ताकि इस देश में गुर्दे के समस्या से जूझ रहे हजारों मरीजों का उपचार डॉक्टर साहब करते रहें।
मेरा एकमात्र पुत्र शुभम कुमार जो जन्म से लेकर लगभग 2 साल तक पूर्णत ठीक रहा अचानक एक सुबह वह बेहोश जैसा हो गया। उसके दॉंत बैठ गए, हाथ-पैर अकड गए और मुँह से लार निकलने लगी। जल्दी-जल्दी में हम उसे जिला मुख्यालय गिरिडीह (झारखण्ड) शिवम् क्लीनिक में नामी शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एस के सिंह के पास ले गये। वहॉं के डॉक्टर ने उसे हाई एण्टीबायोटिक्स दवा दी और ऑक्सीजन पर रखा। वहॉं बच्चे को 7-8 दिन तक भर्ती रखना पडा। इसके उपरान्त अच्छी चिकित्सा के लिए रॉंची में डॉ क़ष्णकुमार (शिशु रोग विशेषज्ञ) के पास ले गया। उन्होंने इसे गम्भीर बीमारी बताई और कहा कि लगातार चार साल तक दवा चलाना पडेगा। दवा का क्रम टूटना नहीं चाहिए। हम बराबर उसकी दवाओं का ध्यान रखते थे। लेकिन बच्चे को हर तीन-तीन माह में वैसा ही दौरा पडता था। हाथ-पैर का अकड जाना, मुँह का टेढा होना आदि लक्षण आते थे, पूर्णिमा को अधिकांशतया दौरा पडता था। ऐसी स्थिति में हम उसे स्थानीय डॉक्टर एस के सिंह के पास ले जाते तो वह तुरन्त बच्चे को ऑक्सीजन लगाते तथा एण्टीबायोटिक देते थे और 6-7 दिन तक अपनी निगरानी में रखते। डॉक्टर का कहना था कि इसका कोई परमानेण्ट इलाज नहीं है यह लगभग पॉंच साल तक ऐसे ही आता रहेगा।
इसी बीच मैं अपने ससुर श्री सहदेव प्रसाद वर्मा से मिला जो किडन्ी फेल्योर के रोगी हैं। उन्होंने हमें दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा, बॉंदा के बारे में बताया वह अपना इलाज पनगरा में करवा रहे हैं जहॉं उन्हें सम्पूर्ण आराम है। उन्होंने कहा कि दिव्य चिकित्सा भवन में आयुर्वेद द्वारा चिकित्सा की जाती है।
हम बच्चे को लेकर दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा पहुँचे। वहॉं पहुँचने पर डॉक्टर साहब मरीजों का इलाज कर ही रहे थे कि अचानक हास्पिटल में ही शुभम को दौरा पड गया। हम लोग काफी परेशान व चिंतित थे कि अब ये कैसे ठीक होगा। हम तो एलोपैथ के आदी हो चुके थे, यहॉं पर आयुर्वेद चिकित्सा होती है जिससे हम और घबरा गए थे कि यहॉं तो ऑक्सीजन भी नहीं देते अब शुभम को कैसे होश आयेगा।
लेकिन डॉ मदनगोपाल वाजपेयी साहब जी ने पूरा आश्वासन दिया कि बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हो जाएगा, कुछ नहीं होगा और उस बेहोशी के दौरान वहॉं के जूनियर डॉक्टर्स ने पंचकर्म उपचारक की अनुपस्थिति में पंचकर्म थियेटर में शुभम को ले जाकर पूरे शरीर की मालिश की और गर्म पानी से एक तौलिया से सिंकाई की। उन्होंने हमें बताया कि शुभम को गुदामार्ग से औषधि दी जाएगी इसमें घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। गुदामार्ग से जो औषधि दी गई उसे उन्होंने वस्तिकर्म बताया। शुभम को वस्ति देने के बाद काफी मात्रा में मल निकला और वह लगभग 4-5 घण्टे के अन्दर सामान्य होने लगा। इस नई चिकित्सा को देखकर हम खुश थे, हम लोग वहॉं लगभग पन्द्रह दिन तक रुके। बच्चे का पंचकर्म चिकित्सा करवाया तथा डॉक्टर की बराबर निगरानी में रहे। रोज बच्चे में आश्चर्य जनक रुप से सुधार हो रहा था। डॉक्टर ने एक साल तक आयुर्वेदिक इलाज चलाने को कहा। मैंने वहॉं पाया कि आयुर्वेदिक इलाज में लगभग डेढ माह में ही मेरा बच्चा और बच्चों से कहीं अधिक शारीरिक और मानसिक रुप से आगे है और दुबारा दौरा अब तक नहीं आया।
मैं डॉक्टर मदनगोपाल वाजपेयी जी और अपनी प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा विधा का आभारी हूँ जिन्होंने मेरी आशा की किरण को वापस लौटा दिया। मैं उन लोग जो मिर्गी को लाइलाज बीमारी मानते हैं से कहना चाहूँगा कि एक बार वे आयुर्वेद चिकित्सा की शरण में आकर देखें आयुर्वेद चमत्कारी चिकित्सा है।
मेरा नाम आशीष है और एमबीबीएस के अंतिम वर्ष का छात्र हूँ मेरा निवास- ग्राम शेखपुर, पोस्ट-कचहरी, जिला-जौनपुर है।
मेरे पापा भारतीय स्टेट बैंक में उप प्रबन्धक के पद पर कार्यरत हैं। उनकी तबियत जुलाई 2013 से ही खराब थी। उनके हाथ और पैरों को प्रापर वर्क करने में काफी दिक्कत होती थी। उसी समय से उन्हें दोनों हाथ उपर उठाने में दिक्कत होने लगी। आगे चलकर बायां एवं दाहिना पैर धीरे-धीरे उठाने तथा चलने में परेशानी होने लगी। सीढी चढने-उतरने में गिरने की समस्या हो गयी। मैं अक्टूबर 2013 में लगभग 6 महीने डॉ पंकज गुप्ता से नेचुरोपैथी का इलाज कराया, एमआरआई कराया लेकिन कोई फायदा नहीं महसूस हुआ। जनवरी 2014 से लगातार एसजीपीजीआई लखनऊ में डॉ सुनील प्रधान को दिखाया जिनको 26 जनवरी 2014 को राष्टपति पुरस्कार मिल चुका है लेकिन विशेष फायदा नहीं हुआ। मैंने उन्हें और कई डॉक्टर्स को दिखाया पर कोई खास फायदा नहीं हुआ। बाद में मुझे दिव्य चिकित्सा भवन, बॉंदा के बारे में जानकारी हुयी। यहॉं आने के बाद यहॉं के इलाज और पंचकर्म से मेरे पापा को काफी फायदा हुआ।
डॉ मदनगोपाल वाजपेयी ज्री जो कि दिव्य चिकित्सा भवन को चलाते हैं उनकी आयुर्वेद में कमाल की नॉलेज है। चूँकि मैं एमबीबीएस का छात्र हूँ तो आयुर्वेद को बहुत पुराना और बेकार समझता था पर यहॉं आने के बाद मैं गलत साबित हुआ। दिव्य चिकित्सा भवन की व्यवस्था देख-रेख एवं इलाज प्रक्रिया अति उत्तम है। डॉ मदगोपाल वाजपेयी जी का व्यवहार एवं स्टॉफ का व्यवहार बहुत ही सराहनीय है। आयुर्वेद आज भी बहुत कारगर है बस इसे डॉ मदनगोपाल वाजपेयी जी जैसे चिकित्सक की जरुरत है।
मेरी उम्र 52 वर्ष है। मुझे पैरों में सूजन थी जिसके लिए एण्टीबायोटिक गोलियॉं खाता था परन्तु कुछ दिनों बाद मेरी खाना लेने की इच्छा खत्म हो गई, उल्टियॉं होने लगीं। हम घबऱाकर पुणे भागे। वहॉं रुटीन चेकअप करने के बाद मुझे डायलेसिस कराने को बोला। पिर वहॉं से हम नागपुर आ गए। वहॉं भी जॉंच कराने पर गुर्दे की खराबी का पता चला।
एलोपैथिक डॉक्टरों ने सीधे मेरी डायलेसिस कर दी और मेरी हर हफ्ते दो डायलेसिस होने लगी। जब मेरी पत्नी माया वाकोडे ने डॉक्टर्स से पूछा कि ये डायलेसिस हमें कब तक करवानी पडेगी तो उनका जवाब था कि डायलेसिस आपकी जिन्दगी भर चलेगी। किडनी फेल्योर का डायलेसिस के अलावा और किसी पैथी में इलाज नहीं है। वहॉं के एक वरिष्ठ डॉक्टर समीर चौबे (इद्रायनी अस्पताल, नागपुर) के द्वारा भी यही बताया गया कि तुम्हारी दोनों किडनी खराब हो गयी हैं जिससे आपको जिन्दगी भर डायलेसिस करवाना पडेगा अन्यथा किडनी ट्रन्सप्लाण्ट कराओ। हम यह सब सुनकर परेशान हो गए। हमने किसी तरह किडनी ट्रान्सप्लाण्ट का डिसाइड किया। मेरी मिसेज के आधे से ज्यादा टेस्ट हो चुके थे मेरी बचने की उम्मीद बहुत कम थी मुझसे जुडे सभी लोग निराश थे।
जब हम किडनी ट्रान्सप्लाण्ट के लिए पूरी तैयारी में थे उसी दिन मेरा भान्जा योगेश हाते भगवान का देवदूत बनकर आया। उसने हमें दिव्य चिकित्सा भवन के बारे में पूरी जानकारी दी। उसने किडनी फेल्योर का सफल इलाज दिव्य चिकित्सा भवन में इण्टरनेट के माध्यम से देख रखा था। उसने कहा कि आप देर न करें वहॉं आपकी डायलेसिस छूट जायेगी। आप चलकर वहॉं इलाज करवाएँ।
हम तुरन्त दिव्य चिकित्सा भवन के लिए रवाना हुए। वहॉं पहुँचने पर हमें ऐसा महसूस हुआ कि हम सही जगह पहुँच गए हैं। दिव्य चिकित्सा भवन किसी बाजार और शहर से दूर है पर उस हास्पिटल में बडी भीड-भाड थी। औरों से बातचीत करने पर पता चला कि यहॉं ऐसी भीड हमेशा रहती है क्योंकि यहॉं का चिकित्सा व्यवस्था पत्र इतना प्रभावशाली है कि लगभग सौ में नब्बे मरीज ठीक होकर जाता है। वहॉं जॉंच कराने पर हीमोग्लोबिन 9-49 डीएल आया जो कि बहुत कम था। ब्लड शुगर 386-एमजी, डीएल काफी बढा हुआ था। यूरिया 11 एमजी, डीएल तथा क्रिटनीन 8-7 एमजी, डीएल था। मेरा पर्चा बना, फाइल बनी, पिर बेड मिल गया और दिव्य चिकित्सा भवन में मेरा उपचार शुरु किया गया। उन्होंने हमे खान-पान पर पूरा परहेज बताया, पंचकर्म आदि भी शुरु कराया गया। हमें तीसरे दिन से ही आराम मिलना शुरु हो गया। हीमोग्लोबिन भी धीरे-धीरे बढने लगा। शारीरिक रुप से मेरे में पूरा सुधार था।
मैंने पूरा एक माह का समय देकर इलाज करवाया। अब मेरी दोनो किडनियॉं काम कर रही हैं। मैं आराम से खा-पी रहा हूँ, सुबह 2 किलोमीटर टहलने जाता हूँ। ये सब आयुर्वेद की देन है जिससे मेरा डायलेसिस बन्द हो गया तथा किडनी ट्रान्सप्लाण्ट से बच गए। अभी मैं मेरी मिसेज तथा मेरे दोनों बच्चे सुख शान्ति से खण्डवा में रहते हैं।
ईश्वर को किसी ने नहीं देखा, परन्तु मैंने देखा है। ईश्व र इसी धरती पर मौजूद हैं, जिसे देखना हो वह दिव्य चिकित्सा भवन में जाये। वहॉं उसे साक्षात् ईश्वर के दर्शन होंगे। इस बात पर बहुतों को आपत्ति हो सकती है, परन्तु मेरे और मेरे जैसे अन्य किडनी रोगियों के लिए यहॉं के डॉक्टर मदनगोपाल वाजपेयी ईश्वर से कम नहीं हैं।
14 साल से मैं मधुमेह का मरीज था। मैं ही नहीं मेरा पूरा परिवार आनुवांशिक रुप से इस रोग से पीडित है। ग्वालियर के प्रसिद्ध् डॉक्टर संजय बंसल हम लोगों की चिकित्सा करते हैं। 2014 के मार्च महीने में मेरे दोनों पैरों में सूजन हो गयी। मैंने डॉक्टर बंसल को दिखाया तो उन्होंने कहा थायरायड बढ गयी है चिन्ता की बात नहीं है, ठीक हो जायेगा। दवा लेने पर कुछ आराम मिला लेकिन जून में पिर से पैरों में भयंकर सूजन हो गया। इस बार अण्डकोश का आकार भी काफी बडा हो गया था। मैंने पुन दिखाया तो कहे कि 10 दिन में ठीक हो जाएगा, लेकिन मुझे उनकी बात से संतुष्टि नहीं मिली तो ग्वालियर के ही नवजीवन अस्पताल में दिखाया। वहॉं कहा गया कि किडनी खराब हो रही है और किडनी स्पेशलिस्ट डॉ, मुनीश गुप्ता को दिखाइये। किडनी खराब होने के नाम पर हमारा पूरा परिवार डर गया और हम लोग गुडगॉंव के फोर्टिस अस्पताल चले गए।
फोर्टिस में डॉं, सौरभ पोटियल ने देखकर भर्ती होने को कहा। मैं वहॉं चार दिन तक एडमिट रहा। 4 दिन एडमिट रहने के दौरान ही मेरा क्रिटनीन 6,2 से बढकर 7 के आस-पास हो गया। डिस्चार्ज के बाद जब हम गये तो उन्होंने कहा कि डायलेसिस करना पडेगा। मैंने डायलेसिस कराने से मना कर दिया और वापस अपने घर ग्वालियर चला आया।
ग्वालियर में हमारे परिचितों को पता चल गया कि मेरी किडनी खराब हो गयी है। एक दिन किसी ने मेरे बडे भाई से कहा कि दिव्य चिकित्सा भवन में आयुर्वेद से अच्छा इलाज होता है और मेरे एक परिचित वहॉं से एक दम ठीक होकर आये हैं। उसके बाद मेरे भैया और मेरी बहन डॉ लक्ष्मी जी खुद दिव्य चिकित्सा भवन आकर यहॉं मरीजों से मिले। उनके आकर आश्वस्त होने पर मैं 21 जून को दिव्य चिकित्सा भवन आ गया। यहॉं आने पर मेरा क्रिटनीन 7,3 था। 30 यूनिट इंसुलिन सुबह और 20 यूनिट शाम को लेता था। दिव्य चिकित्सा भवन में डॉ, मदनगोपाल वाजपेयी ने मुझे देखकर भर्ती होने की सलाह दी। उनकी सलाह पर मैं भर्ती हो गया। 28 दिन तक मैं दिव्य चिकित्सा भवन में रहा। इस दौरान इंसुलिन पूरी तरह बन्द हो गयी। मेरा क्रिटनीन लेवल घटकर 5,2 पर आ गया।
यहॉं आकर मुझे नया जीवन मिला है। यहॉं की चिकित्सा का लाभ देखकर मेरे सहित मेरा पूरा परिवार हैरान है। यहॉं आकर हम लोगों में आयुर्वेद के प्रति इतना अधिक भरोसा हो गया है, जो हम लोग कभी सोचते तक नहीं थे।
विष्णु अग्रवाल, कैलाश टॉकीज लश्कर, ग्वालियर (म,प्र,)
मैं चॉंद बाबू अहमद खान अपने मामू सुहेल परवेज की बीमारी से काफी गम्भीर था। मामू को अधिक तनाव के कारण अचानक सीने में काफी दर्द हुआ हमने इनको उन्नाव के महक हास्पिटल में दिखाया, इनका ब्लड प्रेशर काफी बढा हुआ था, इसका एलोपैथिक इलाज चलता रहा कोई विशेष सुधार न होने पर पूरी जॉंचें करवाने पर किडनी की परेशानी का पता चला उसके बाद मामू को पसीन छूट गया जिसके कारण दो दिन तक मामू वहीं एडमिट रहे। जब उनका यूरिया व क्रिटनीन लेबल तेजी से बढ रहा था तो हमने किडनी वाले डॉक्टर निर्भय (कानपुर) को दिखाया उन्होंने इसका इलाज डायलेसिस बताया पिर हम उन्हें लखनऊ पीजीआई ले गये वहॉं दो दिन भर्ती रखा। सोनोग्राफी कराने पर सेकेण्ड ग्रेड की किडनी और पुअर सीएमडी आया। पीजीआई में भी मामू को कोई आराम नहीं मिला। सभी जगह के डॉक्टर्स ने डायलेसिस के अलावा और कोई उपाय नहीं बताया तब हम कानपुर में डॉ निर्भय के यहॉं डायलेसिस करवाने लगे, अभी मामू की चार डायलेसिस हुई थी तभी उन्नाव के एक डॉक्टर ने पनगरा, हास्पिटल के बारे में बताया। हम डायलेसिस छुडाने वाली बात सुनकर तुरन्त दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा, बॉंदा पहुँचे। व़हॉं हम इक्कीस दिन तक डॉक्टर की निगरानी में रहे वहॉं मामू की पंचकर्म चिकित्सा और योग चिकित्सा भी होती थी, साप्ताहिक जॉंच होती थी जब हम एडमिट हुए उस वक्त यूरिया 118 व क्रिटनीन 10-2 था। 3 सप्ताह में यूरिया घटकर 98 और क्रिटनीन 6-3 रह गया।
यहॉं के डॉक्टर मदनगोपाल वाजपेयी जी ने पंचकर्म कोर्स पूर्ण होने के बाद हमें उचित परामर्श (खान-पान का पूरा ध्यान, प्राणायाम) के साथ डिस्चार्ज किया।
अब हमारे मामू को पूरा आराम है और उनका डायलेसिस भी छूट गया।
सुहेल परवेज
लगभग चार साल पहले हमें अपनी पिता जी की किडनी खराब होने का पता चला। पता चलने पर हमारा पूरा परिवार बहुत चिंतित हो गया। हम अपने पिता जी की दवा ग्वालियर के डॉ मनीव गुप्ता (नेफ्रोलाजिस्ट, एम-डी, डीएम) से करा रहे थे। हम लोग ग्वालियर से 100 किलो मीटर दूर राजस्थान के धौलपुर जिले के बाडी कस्बे के रहने वाले हैं परन्तु वहॉं आस-पास कोई अच्छी सुविधा वाला अस्पताल न होने से ग्वालियर में इलाज करा रहे थे।
डॉ मनीष गुप्ता ने यह कहकर हमारी चिन्ता बहुत बढा दी थी कि क्रिटनीन और यूरिया को हम बढने से रोग नहीं सकते और न कम ही कर सकते हैं। उनका कहना था कि एक दिन क्रिटनीन इतना बढ जायेगा कि आपका डायलेसिस करना पडेगा और वह भी सप्ताह में दो बार।
हम डॉ मनीष गुप्ता की दवा कराते रहे और क्रिटनीन बढता रहा। धीरे-धीरे बढते हुए क्रिटनीन 5-10 पर पहुँच गया तो डॉ गुप्ता ने कहा कि अब डायलेसिस का समय आ गया है। वे बोले कि हाथ में पिश्चुला लगा के रखना क्योंकि डायलेसिस कभी भी हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि इनका डायलेसिस सप्ताह मे दो बार होगा। इसके बाद तो हम सभी घबरा गये थे। तभी ग्वालियर के ही हमारे पहचान वाले विष्णु अग्रवाल जी ने हमें बॉंदा जिले के दिव्य चिकित्सा भवन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वहॉं किडनी रोगियों के लिए साक्षात भगवान य्प में डॉ मदनगोपाल वाजपेयी ऐसी चिकित्सा करते हैं कि हर जगह से निराश व्यक्ति पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।
उनके कहने पर हम पिताजी को लेकर पनगरा (बॉंदा) के दिव्य चिकित्सा भवन गये। ज्रब वहां पर मेरे पिताजी का चेकअप कराया गया तो क्रिटनीन 7 3 तथा यूरिया 127 3 आया। रिपोर्ट देखकर डा0 साहब ने कहा कि घबराने की कोई बात नहीं है। कुछ ही दिन में यूरिया और क्रिटनीन धीरे-धीरे कम हो जायेगा।
हम वहां पर पिताजी के साथ दिन तक भरती रहे। व़हां की दवा और पंचकर्म के साथ ही परहेज ने मेरे पिताजी को नया जीवनदान दिया। मेरे पिताजी डायलिसिस से बच गये और अभी वे सामान्य य्प से अपना जीवन जी रहे हैं। इस समय मेरे पिता जी का क्रिटनीन------और यूरिया------ है।
मैं उन लोगों से कहना चाहता हूँ जिनकी किडनी खराब है, वे लोग एलोपैथिक में अपना समय खराब नहीं करें और जल्दी से दिव्य चिकित्सा भवन में जाकर इलाज करायें। जैसा कि विष्णु जी ने बताया था कि वहॉं भगवान के य्प में डॉक्टर वाजपेयी जी हैं वह बात बिल्कुल सही है। आप लोग यकीन मानें वहॉं जाकर निश्चित ही डायलेसिस से बचेंगे।
राहुल मित्तल
डॉ॰ मदन गोपाल वाजपेयी द्वारा दिव्य चिकित्सा भवन में लगातार १० वर्षों से ‘किडनी पेâल्योर’ रोगियों पर व्यापक कार्य किया गया उसी कार्य को अब आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय से आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने यह प्रमाणित कर दिया कि कुछ स्थितियों को छोड़कर ऐसे किडनी पेâल्योर रोगी जिन्हें डायलेसिस कराने के लिए कह दिया गया हो या जिनकी डायलेसिस शुरू हो, ऐसे रोगियों को डायलेसिस से बचाने और सामान्य जीवन जीने की ओर लाने में बड़ी सफलता मिली। इस प्रकार यह साबित हो गया कि आयुर्वेद चिकित्सा के प्रयोगाऽनुभव एलोपैथ इलाज से अच्छे परिणामदायक हैं। जीवन मृत्यु तो ईश्वर के हाथ है पर गुर्दा पेâल्योर का डायलेसिस कोई इलाज भी तो नहीं है और न १०-२० वर्ष तक जीवन जीने का रास्ता है।
१५ फरवरी २०१४ को श्रीमती कलावती श्रीवास्तव उम्र ७६ अशोक नगर इलाहाबाद को यहाँ लाया गया। उनके दो बेटे इलाहाबाद और नैनीताल हाईकोई में सीनियर एडवोकेट हैं और एक बेटा डॉ॰ आनन्द श्रीवास्तव एम॰बी॰बी॰एस॰, एम॰डी॰। उन्हें २५ साल से मधुमेह फिर थायराइड और उच्च रक्तचाप। ४ साल से वृक्क सन्यास (ण्R) की ओर वह बढ़ने लगी। ज्यों-ज्यों इलाज होता गया, त्यों-त्यों क्रिटनीन बढ़ता गया और अन्तत: एस॰जी॰पी॰जी॰आई॰ में डायलेसिस शुरू कर दी गयी। कुछ मिलाकर ८ डायलेसिस हुयी। डॉ॰ आनन्द श्रीवास्तव जी कहते हैं कि मुझे मालूम है कि एलोपैथ में किडनी फ़ेल्योर का कोई इलाज नहीं है। उसी समय उनकी भेंट डॉ॰ वेद प्रकाश त्यागी अध्यक्ष सी॰सी॰आई॰एम॰ (भारत सरकार) से हो गयी। उन्होंने यहाँ दिखाने की सलाह दी।डायलेसिस के तुरन्त बाद वे यहाँ लेकर आ गये उस समय जाँच करायी गयी तो क्रिटनीन ७.४ था। उनकी चिकित्सा शुरू हुयी, पंचकर्म द्वारा शरीर शोधन के साथ-साथ औषधियाँ शुरू हुयी। इन छह माह में उन्हें कभी भी डायलेसिस की जरूरत नहीं पड़ी। पिछले ६ माह में उनकी पैथालॉजिकल स्थिति इस प्रकार है-
दिनांक |
यूरिया |
क्रिटनीन |
कैल्शि यम |
सोडियम |
पोटेशियम |
१०.१.१४ |
८४.७ |
४.८ |
९.६ |
१३६.४ |
४.६ |
१५.१.१४ |
८०.० |
४.८ |
९.८ |
१३६.० |
४.६ |
१३.२.१४ |
६९.६४ |
४.६ |
|
१३४.० |
३.८ |
११.४.१४ |
९१.७ |
४.२ |
९.५ |
१३८.६ |
५.४ |
१६.४.१४ |
८४.२ |
३.७ |
९.६ |
१३६.८ |
५.५ |
एक डायलेसिस डेपेण्डेड मरीज को अब डायलेसिस की जरूरत नहीं पड़ रही। इन्सुलिन का इन्जेक्शन भी बन्द हो गया क्योंकि रक्त शर्वâरा (ब्लड शुगर) सामान्य रहने लगा। थायरायड की भी दवा बन्द हो गयी। रोगिणी के पुत्र डॉ॰ आनन्द श्रीवास्तव जी ने जो अपने विचार प्रकट किए वे यहाँ प्रकाशित हैं-
मैं डॉक्टर आनन्द श्रीवास्तव अशोक नगर, इलाहाबाद का निवासी हूँ। एमबीबीएस करने के बाद इलाहाबाद में ही प्रैक्टिस करता हूँ और आरोग्यम नाम से मेरा अपना अस्पताल है।
अब से एक वर्ष पहले की बात है हमारी माता जी जिनका नाम श्रीमती कलावती श्रीवास्तव है को किडनी में खराबी का पता चला। ७६ वर्षीय अपनी माता का प्रारम्भिक इलाज मैंने खुद किया परन्तु बाद में एसजीपीजीआई लखनऊ में उन्हें दिखाया।
मैं उन्हें पीजीआई में ले तो जरूर गया पर एलोपैथिक की हकीकत जानता था। चूंकि मैं खुद एक एमबीबीएस डॉक्टर हूँ इसलिए यह अच्छी तरह पता था कि इस पैथी में किडनी की बीमारी का कोई पूर्ण इलाज नहीं है। इस पैथी में हम लोग बीपी और सुगर को मेंटेन करने के लिए कुछ दवाएं देते हैं। इसके साथ ही सोडियम, पोटैशियम कैसे बैलेन्स रहे इसका उपाय दवा से करते हैं। ऐसा इसलिए कि यदि यह सब मेंटेन रहेगा तो किडनी की प्राब्लम कुछ घटेगी।
इसी बेस पर पीजीआई में भी इलाज चलता रहा। हालांकि इलाज के दौरान भी क्रिटनीन का बढना जारी रहा। सच कहिए तो मुझे इसका रिजल्ट पहले से ही पता था इसलिए मैं जानता था एक दिन डायलिसिस करवाना ही पडेगा और मैं उस दिन के लिए पूरी तरह तैयार था। इसलिए धीरे-धीरे करके वह दिन आ गया जब डायलेसिस आवश्यक हो गयी। अबसे लगभग डेढ महीने पहले मेरी माताजी को पहली बार पीजीआई में ही डायलेसिस हुआ। सप्ताह में दो बार उनकी डायलेसिस करनी पडी। इस तरह से एक महीने के अन्दर कुल ८ बार उनकी डायलेसिस हुई।
इसी दौरान हमारे एक परिचित जो आयुष पैथी के डॉक्टर हैं ने हमें एक बार आयुर्वेद चिकित्सा अपनाने की सलाह दी। यह सलाह देते हुए उन्होंने हमें बांदा जिले के दिव्य चिकित्सा भवन का पता दिया और कहा कि वहां दिखाइए निश्चित ही लाभ मिलेगा। उनकी सलाह मानकर हम अपनी माता जी को लेकर ८वीं डायलेसिस के बाद तुरंत बांदा जिले के दिव्य चिकित्सा भवन पहुँचे।
७ जनवरी को वहां पर माता जी को एडमिट कर आयुर्वेदिक पद्धति से चिकित्सा शुरू हुई। जब हम लोग वहां पहुँचे थे तो उनका क्रिटनीन ७४ था। यह स्थिति डायलेसिस के तुरंत बाद की थी। अभी आज २३ जनवरी को क्रिटनी ५४ है परन्तु एक राहत है कि इन १७ दिनों में कोई डायलेसिस नहीं हुई।
यहां आकर पता चला कि आयुर्वेद में इसका इलाज है। यहीं पर मेरे बगल में रहने वाले एक मरीज का क्रिटनीन एक सप्ताह में ही २ प्वाइंट घटा हुआ मैंने देखा। डॉक्टर आनन्द श्रीवास्तव, अशोक नगर, इलाहाबाद
चूँकि श्रीमती कलावती श्रीवास्तव जी बहुत दिन एक विशेष मानसिक रोग से भी ग्रस्त थीं आवश्यक योग प्राणायाम, प्रात: भ्रमण आदि बिल्कुल नहीं करती। घर वालों को उन्हें सही लाइफ स्टाइल का पालन कराने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। अन्यथा और अच्छा परिणाम आता। किन्तु डायलेसिस से बचना और यूरिया क्रिटनीन का स्थिर रहना भी बहुत बड़ी बात है। लगभग १७ दिन तक श्रीमती कलावती यहाँ रही और आगे भी समय-समय पर उनके बेटे लाते तथा उपचार लेते जा रहे हैं। डॉ॰ वाजपेयी जी का कहना है कि यदि सरकार सहायता करे तो आयुर्वेद से अधिकांश रोगियों को वे डायलेसिस से बचा सकते हैं।
जब किसी जवान बेटे का क्रिटनीन ११.७ स्ु/्त् हो गया हो। उस समय उसके परिवार में क्या बीत रही होगी। २ जून २०१४ को श्री प्रशान्त गुप्ता, मुरारी वाला कुआँ शामली (उत्तर प्रदेश) को उनकी माँ, उनके छोटे भाई डॉ॰ निशान्त लेकर आये। उन्होंने बताया कि सभी अस्पतालों में डायलेसिस करने की ही सलाह दी गयी है, पर हम डायलेसिस कराना नहीं चाहते, क्योंकि एक बार डायलेसिस शुरू हो जाने पर उससे छुटकारा पाना तो असम्भव है। हमने प्रशान्त का एम्स में नेप्रâोलॉजिस्ट डॉ॰ अतुल कुमार का ट्रीटमेंट कराया। उन्होंने कहा कि ६ माह में ट्रान्सप्लाण्ट की जरूरत पड़ती है। हरियाणा के कई हॉस्पिटल में दिखाते रहे। प्रशान्त के भाई डॉ॰ निशान्त ने इण्टरनेट से यहाँ का पता लिया और २ जून को लेकर आ गये। प्रशान्त को चिकित्सा हेतु रखा गया। भर्ती के दिन उनकी जाँच करायी तो हेमोग्लोबिन ८.० ु/्त् यूरिया १४७.३ स्ु/्त् सीरम क्रिटनीन ११.७, वैâल्शियम ९.६, यूरिक एसिड ८.१ था। रोगी में बल अच्छा था। प्रशान्त को पंचकर्म और औषधीय चिकित्सा प्रारम्भ की गयी। उचित आहार व्यवस्था की गयी। एक सप्ताह बाद जब पुन: जाँच कराया तो आश्चर्य जनक रिपोर्ट प्राप्त हुयी। होमोग्लोबिन १०.० ु/्त् यूरिया १४७.३ से घटकर १०.८, यूरिक एसिड ७.६ हो गया। २ जून से लेकर ३० जून तक प्रशान्त को आई॰पी॰डी॰ में रखा गया। पंचकर्म, योग-प्राणायाम पथ्याहार और औषधियाँ सेवन करायी गयी। अस्पताल की उपचारिकाओं (नर्सों) ने इस रोगी की विशेष देखभााल की। क्योंकि पैथालॉजी के आधार पर रोगी में कभी इमरजेन्सी आ सकती थी। प्रशान्त का चिकित्सा परिणाम इस प्रकार रहा-
दिनांक |
हेमोग्लोबिन |
यूरिया |
क्रिटनीन |
यूरिक |
ट्राइग्लिस-राइड |
कैल्शि यम |
सोडियम |
पोटे शियम |
०३.६.१४ |
८.० |
१४७.३ |
११.७ |
८.१ |
१६३.६ |
९.६ |
१३६.१ |
५.१ |
१०.६.१४ |
१०.० |
१४२.० |
१०.८ |
७.६ |
- |
९.४ |
१३६.४ |
५.२ |
१७.६.१४ |
९.४ |
१२८.० |
९.१ |
७.२ |
- |
९.६ |
१३६.० |
५.१ |
२४.६.१४ |
१०.० |
११३.० |
८.४ |
६.९ |
- |
९.६ |
१३६.४ |
४.८ |
३०.६.१४ |
१०.० |
९६.० |
७.७ |
९.६ |
१३५.७ |
९.६ |
१३६.९ |
४.४ |
उपर्युक्त रिपोर्ट को आप स्वत: देखकर आयुर्वेद चिकित्सा के प्रभाव का आंकलन करें। यूरिया, क्रिटनीन की यदि बात न की जाए तो भी देखें दिनांक ३.६.१४ को ट्राइग्लिसराइड (कोलेस्ट्राल) १६३.६ था वह मात्र २७ दिनों में १३५.७ (यानी नार्मल) पर आ गया। हम चाहते थे कि प्रशान्त कुछ दिन और आई॰पी॰डी॰ में रहकर चिकित्सा लें तो यह आशा की जा सकती थी कि यूरिया, क्रिटनीन नार्मल भी आ जाता। पर देश का दुर्भाग्य है कि साक्षरता का औसत बढ़ने के बावजूद व्यक्ति चिकित्सा के मामले में निरक्षर है। वह डायलेसिस में पूरा जीवन बिता देगा पर यदि आयुर्वेद चिकित्सा से अच्छा लाभ हो रहा है तो वह आवश्यक समय भी नहीं दे पा रहा। जो भी हो आयुर्वेद चिकित्सा एलोपैथ से बहुत ही श्रेष्ठ है यह हम प्रयोगों के आधार पर कह सकते हैं। दसवीं डायलेसिस की जरूरत नहीं पड़ी
सच को स्वीकारना और दूसरे दुखी और परेशान लोगों को सही रास्ता बताना आज बिरले ही कर पाते हैं पर एम॰बी॰बी॰एस॰ डॉक्टर आनन्द श्रीवास्तव जी में वास्तविक डॉक्टर के गुण हैं। अपनी माता श्रीमती कलावती जी के डायलेसिस से छुटकारा के बाद उन्होंने एक मिशन बना लिया आयुर्वेद के प्रचार का। आयुर्वेद के प्रभाव के बारे में दूसरों को बताने का। उन्होंने श्रीमती पार्वती देवी (३५ सी ४ चिन्तामणि रोड, जार्ज टाउन, इलाहाबाद) को भी सलाह दी आप एक बार आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय चित्रवूâट या दिव्य चिकित्सा भवन में अवश्य दिखा लें। आपकी डायलेसिस बन्द हो जाएगी। इनकी ९ डायलेसिस हो चुकी थी। श्रीमती पार्वती देवी की उम्र ५० वर्ष। इन्हें बदन दर्द होता था तो इन्होंने पेन किलर खाना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद शरीर में सूजन आने लगी, हाई ब्लड प्रेशर रहने लगा। जाँच कराने पर पता चला कि किडनी पेâल्योर हो गया। इलाहाबाद में एक प्रसिद्ध हॉस्पिटल में दिखाया तो उन्होंने डायलेसिस शुरू कर दी। १४ अप्रैल २०१४ को अंतिम बार डायलेसिस करा कर १५ अप्रैल २०१४ को उनके बेटे-बहू यहाँ लेकर आ गये। गले से डायलेसिस हो रही थी। उसी दिन ब्लड टेस्ट कराया गया तो हेमोग्लोबिन ५.४ ु/्त् सीरम यूरिया ५८.९ स्ु/्त् सीरम क्रिटनीन ४.२ स्ु/्त्, इनका हेपटइटिस भी पॉजिटिव था।
उन्हें भर्ती कर लिया गया आयुर्वेदीय पंचकर्म औषधियाँ प्रारम्भ की गयीं। यह स्पष्ट बता दिया गया कि डायलेसिस रोकने के बाद रोगी में यूरिया, क्रिटनीन बढ़ने की सम्भावना तो बढ़ जाती है पर उपद्रव (म्दस्ज्त्ग्म्aूग्दहे) न बढ़े इसका पूरा प्रयास रहता है। पंचकर्म में निरूहवस्ति स्वेदन और विरेचन कर्म कराया गया। औषधियाँ दी गयी। पहले सप्ताह में ही अच्छे रिजल्ट आ गये। यूरिया क्रिटनीन तो थोड़ा बढ़ा क्योंकि डायलेसिस बन्द कर दी गयी थी। पर हेमोग्लोबिन भी बढ़ गया। और किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं हुयी। यह अच्छा संकेत था। चिकित्सा चलती रही दिनांक २९ अप्रैल २०१४ को पुन: जाँच हुयी तो हेमोग्लोबिन बढ़ा पाया यूरिया और क्रिटनीन घटने की रिपोर्ट प्राप्त हुयी। इस प्रकार ३१ मई २०१४ को अंतिम जाँच कराकर श्रीमती पार्वती को डिस्चार्ज किया गया। श्रीमती पार्वती पाण्डेय को फिर कभी डायलेसिस की जरूरत नहीं पड़ी। इनकी पैथालॉजिकल रिपोर्ट इस प्रकार रही।
दिनांक |
हेमोग्लोबिन |
यूरिया |
क्रिटनीन |
कैल्शियम |
सोडियम |
पोटेशियम |
१५.४.१४ |
५.१ |
५८.९ |
४.२ |
९.४ |
१३६.४ |
५.१ |
२२.४.१४ |
६.० |
७३.६ |
६.० |
९.६ |
१३६.६ |
५.० |
२९.४.१४ |
७.० |
६७.३ |
५.७ |
९.८ |
१३६.८ |
४.६ |
६.५.१४ |
१०.० |
६३.१ |
५.१ |
९.६ |
१३६.८ |
४.२ |
३.५.१४ |
१०.० |
५९.० |
४.५ |
९.१ |
१३६.४ |
४.६ |
इस प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा उस स्टेज में कार्य करती हैं जहाँ पर एलोपैथ के पास कोई विकल्प नहीं बस जरूरत है अच्छे आयुर्वेद संस्थान की सेवा लेने की।
७ साल पहले मेरी बेटी को अचानक बेहोशी आ गयी और मुँह से झाग आ गया। हम घबरा गये। हालाँकि १५-२० मिनट बाद बेहोशी दूर हो गयी। इसके बाद फिर १५ दिन बाद यह दौरा गया। उस दिन हमारे घर में एक रिश्तेदार रुके थे। उन्होंने देखते ही कह दिया कि यह तो मिरगी का दौरा है। दूसरे दिन हम बेटी को कानपुर के डॉ॰ के.ए. खान (न्यूरो) को दिखाने ले गये। उन्होंने ई.ई.जी. करायी। सब कुछ नार्मल आया। ई.ई.जी. रिपोर्ट आपके सामने है। डॉ॰ खान का इलाज ३ वर्ष तक चला। परन्तु कभी न कभी दौरा आ ही जाता था। २०१० में उन्होंने फिर ई.ई.जी. कराया। होम्योपैथी दवा भी चली, परन्तु लाभ नहीं मिला। बेटी की उम्र अब २७ वर्ष की हो गयी है। शादी की उम्र हो गयी है, पर डर था कि शादी के बाद ससुराल में यदि दौरा पड़ गया तो क्या होगा। एलोपैथिक दवा तो चल ही रही थी किन्तु दौरों का स्वरूप बदल गया। बहोश हो जाती, हाथ-पैर ऐंठने लगते और मुँह से झाग भी आ जाता। होश में आने पर जीभ ऐंठती रहती, कट जाती। होश आने पर बहुत घबराहट भी होती और लगता कि बचेंगे नहीं। मासिक चक्र के समय अधिक समस्या होती। एक मित्र यूनानी डॉक्टर ने चित्रवूâटधाम में आयुष ग्राम ट्रस्ट के चिकित्सालय के बारे में बताया। हमने डॉक्टर साहब के साथ ही बेटी और उसकी माँ को भेज दिया। पर्चा बनवाया, अपना क्रम आने पर डॉक्टर साहब के कक्ष में पहुँचे। वहाँ पूरी ‘केस हिस्ट्री’ ली गयी। नाड़ी परीक्षण किया गया। वहाँ पूछा गया कि यदि निःशुल्क वाली दवा लेना चाहते हैं तो वहाँ से पैकेट ले लीजिए, यह दवा धीरे-धीरे काम करेगी और रोग २-३ साल में ठीक हो जाएगा। माँ ने कहा कि आप आयुर्वेद की श्रेष्ठ दवाइयाँ लिखें हम पैसा खर्च करेंगे। क्योंकि बच्ची जल्दी रोग से छुटकारा पाये, हमें इसकी शादी भी करनी है।
डॉक्टर साहब ने दवाइयाँ लिखीं, उन्हें हमने वहीं के आयुर्वेदिक स्टोर से खरीदा।
८ फरवरी २०१४ से आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय की दवाइयाँ शुरू हुयीं। पहले माह से ही आराम मिलना शुरू हो गया, एलोपैथ दवाइयाँ डॉक्टर ने कम कराना शुरू कर दिया। दूसरे माह मेरी बेटी में इतना आत्मविश्वास आ गया कि उसने एलोपैथिक दवाइयाँ स्वतः छोड़ दीं।
चित्रकूटधाम के आयुष ग्राम चिकित्सालय का ४ माह इलाज करते हो गये, अब एक दिन भी दौरा नहीं आया। डॉक्टर ने जो प्राणायाम, योग बताया था, हमारी बेटी वह आज भी कर रही है जैसा खान-पान बताया वह भी कर रही है। डॉक्टर ने बताया कि एक वर्ष में यह भी दवाइयाँ बन्द हो जायेंगी। अब हम बेटी की शादी लिए प्रयास करने लगे। मेरा सभी मिरगी रोगियों को संदेश है कि वे एलोपैथ दवाओं के चक्कर में समय नष्ट न करें अन्यथा जीवनभर दवा खानी पड़ेगी और रोग भी नहीं जाएगा। आप आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय का इलाज लें, आर्थिक स्थिति ठीक हो तो निःशुल्क इलाज की जगह ट्रस्ट से श्रेष्ठ इलाज की माँग करें। निःशुल्क इलाज में ट्रस्ट द्वारा सामान्य औषधियाँ दी जाती हैं, जिनका खर्च ट्रस्ट स्वयं वहन करता है, यह ट्रस्ट का सेवा कार्य है।
- मनोहर मिश्रा, दिव्या का पिता
मेरे बच्चे को जन्म से बेहोशी, चक्कर, मुँह से झाग आने और कभी-कभी ज्वर आने की शिकायत थी। मेरे बेटे का नाम राजू है। मैं लगातार दवाइयाँ कराता गया। बच्चे की उम्र १४ साल की हो गयी पर दवाइयों से मुक्ति नहीं मिली। जिला पन्ना (म॰प्र॰) के गढ़ी पड़रिया का रहने वाला होने से मैंने बच्चे को रीवा में डॉक्टर एस.के. खनिजो को दिखाया। उन्होंने ई॰ई॰जी॰ करायी। रिपोर्ट प्रकाशित है, आप भी देखें। तभी किसी के बताने मैं बच्चे को लेकर आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय में दिखाने गया। अपना क्रम आने पर डॉक्टर साहब ने राजू का परीक्षण किया। नाड़ी देखी और भरोसा दिलाया कि आपका बच्चा ठीक हो जाएगा। यह दिन था २४ मार्च २०१४। एक माह की दवा ३५००/- के आस-पास की हुयी, क्योंकि मैंने डॉक्टर से कहा कि आप महँगी से महँगी दवा लिखें। हमने दवा खरीदी और सेवन कराना शुरू किया, परहेज और खान-पान व्यवस्था और प्राणायाम भी कराया। विश्वास करें कि पहले महीने से दौरे बन्द हो गये। बच्चे का स्वास्थ्य बदलने लगा। बच्चा खुश रहने लगा, पढ़ने जाने लगा, चिड़चिड़ापन खत्म हो गया। हमारे सभी पड़ोसी यह देखकर चकित थे कि जन्म-जात बीमारी में पहले माह से ही लाभ। डॉक्टर ने कहा है कि एक साल में पूरी तरह से दवाइयाँ बन्द हो जाएंगी। केवल खटाई, कोल्डड्रिंक, चाय, कॉफी, फास्टफ़ूड का परहेज रहेगा। आप स्वयं मेरे बच्चे की रिपोर्ट देखें और चाहें तो बच्चे को आकर देखें। मेरी सलाह है कि एलोपैथ का चक्कर छोड़कर चित्रवूâटधाम पहुँचकर या फोनकर आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय का इलाज करायें, आपको अच्छी सफलता मिलेगी। आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय पूरी तरह से सेवा भावना से कार्य कर रहा है। चिकित्सालय में जो भी आ रहा है वह सेवा कार्य में लग रहा है। भगवान् श्री राम की तपोभूमि से यह बहुत ही श्रेष्ठ जनकल्याण का कार्य हो रहा है।
- राजू का पिता
मेरा नाम रामभरोसे कुशवाहा है और उम्र 58 वर्ष। मैं ग्राम-वन, पोस्ट-सौजना, जिला-विदिशा (मध्य प्रेदश) का रहने वाला हूँ। मैं सन् 1988 का वैध विशारद हूँ, पर पेशे से दुकानदार हूँ। केबल थोडे दिनों तक ही प्रैक्टिस कर पाया क्योंकि हमारे आस-पास के लोग आयुर्वेद पर थोडा भी भरोसा नहीं करते और किसी भी बीमारी के इलाज के लिए एलोपैथिक डॉक्टर के पास ही जाते हैं। इसलिए मुझे जीवन निर्वाह के लिए प्रैक्टिस छोडकर दूसरा काम अपनाना पडा।
मुझे आज से लगभग दो साल पहले सीने में बांयीं तरफ दर्द होना शुरू हुआ। इसी के साथ धडकन भी बढने लगी और ब्लड प्रेशर भी अधिक होने लगा। मैंने इसके इलाज के लिए विदिशा में ही एक डॉक्टर को दिखाया। वे डॉक्टर ह़दय रोग विशेषज्ञ थे। कुछ दिन तक उनकी दवा ली लेकिन दर्द या ब्लड प्रेसर कुछ भी कम नहीं हो पा रहा था। उसके बाद एक दूसरे डॉक्टर को दिखाया जो भोपाल से सप्ताह में एक बार विदिशा आते थे। उन्होंने कहा कि थोडे दिन तक दवा खाने से बीमारी समाप्त हो जाएगी, लेकिन समाप्त होने को कौन कहे थोडा भी फायदा नहीं दिख रहा था।
इन दोनों डॉक्टरों से लगभग 1 साल तक दवा कराने पर भी फायदा न होने पर मैं भोपाल के भोपाल मेमोरियल अस्पातल में चला गया। वहां के डॉक्टर ने कुछ टेस्ट कराकर कहा कि शीघ्र ही परेशानी खत्म हो जाएगी। उनके शीघ्र ही ठीक होना कहने पर मैं उनकी दवा कराता रहा। धीरे-धीरे एक साल तक उनकी दवा चली लेकिन दर्द कम होने की जगह बढने लगा। पहले एक तरफ होने वाला दर्द अब बढकर दोनों तरफ होने लगा। अब डॉक्टर कहने लगे कि मांस बढ गया है और यह दवा से नहीं ठीक हो पायेगा। इसको ठीक होने के लिए ऑपरेशन करना पडेगा। बिना ऑपरेशन के इस दर्द से आराम नहीं मिलेगा। उन्होंने जब यह कहा कि ऑपरेशन कराना ही पडेगा तभी मैंने सोच लिया कि ऑपरेशन से पहले मैं एक बार बॉंदा जिले के दिव्य चिकित्सा भवन में जरूर जाऊँगा।
मुझे दिव्य चिकित्सा भवन के बारे में पहले से पता था कि यहॉं पर अनेक असाध्य रोगी ठीक हो जाते हैं लेकिन मैं दूरी की वजह से आने से बचना चाहता था। जब यह लगा कि एलोपैथ में रहकर ऑपरेशन कराना ही पडेगा तो मैं 5 जनवरी 13 को दिव्य चिकित्सा भवन आ गया। यहॉं डॉक्टर मदनगोपाल वाजपेयी ने देखने के बाद भर्ती होने की सलाह दी। चूँकि मुझे यहां के बारे में पता था इसलिए मैं पूरी तैयारी के साथ आया था और भर्ती हो गया। यहां चली आयुर्वेद चिकित्सा से मेरा दर्द 80 प्रतिशत ठीक हो गया है वह भी केवल 13 दिन में ही जबकि एलोपैथ में मैं पिछले दो वर्ष से समय और पैसा गंवा रहा था।
अब लगता है कि मैं जल्दी ही पूरी तरह ठीक हो जाऊँगा। मेरी बीमारी के बारे में उस समय दिव्य चिकित्सा भवन में अपनी मां का इलाज करा रहे एक एमबीबीएस डॉक्टर आनन्द श्रीवास्तव का कहना है कि एलोपैथ में इस बीमारी को गायनेकोमैस्टेसिया कहते हैं जिसका मतलब होता है मेल (पुरूष) में ब्रेस्ट (छाती) का डेवलेपमेंट (विकास) होना और इसका एक मात्र इलाज ऑपरेशन ही है।
मेरा नाम छोटे लाल मिश्रा है। मेरी उम्र 56 वर्ष है। मैं रीवा (मध्य प्रदेश) जिले के सरई क़ष्ण कुमार नामक एक छोटे से गांव में रहकर खेती किसानी का काम करता हूँ। इलाहाबाद के फीनिक्स अस्पताल के डॉक्टर ने मेरी जिन्दगी दो-चार दिन बताते हुए घरवालों से सेवा करने के लिए कह दिया था किन्तु आयुर्वेद ने मेरी जिन्दगी बढा दी। उस डॉक्टर के कहे हुए आज पांच महीने से अधिक का समय हो गया, मैं न सिर्फ जिन्दा हूँ बल्कि आराम से अपने सारे काम भी कर रहा हूँ।
5 माह पहले की बात है। मुझे लगातार तीन दिन तक बुखार होता और ठीक हो जाता। मैं गंभीरता से इस बारे में नहीं सोच रहा था कि चौथे दिन भी बुखार हुआ पर इस बार ठीक नहीं हुआ। अबकी मैं चलने-फिरने में भी असमर्थ हो गया। परिवार के लोग रीवा संजय गांधी राजकीय अस्पताल में लेकर गए। मेरी हालत खराब देखकर वहां के डॉक्टर ने एडमिट कर लिया। मैं वहां 8 दिन तक एडमिट रहा लेकिन मेरी तबियत ठीक नहीं हो रही थी। 8वें दिन तो मेरा पेशाब भी बन्द हो गया तब डॉक्टरों ने मुझे रेफर करते हुए इलाहाबाद के फीनिक्स अस्पताल में ले जाने की सलाह दी। उन लोगों ने कहा कि यूरिया बढ गया हैा
घर वाले मुझे फीनिक्स अस्पताल ले गए। वहां पर कई प्रकार की जांच कराने के बाद मुझे एडमिट होने के लिए कहा गया। मैं वहां पर 6 दिन भर्ती रहा। छठें दिन मेरे घर वाले यह सुनकर निराश हो गए जब डॉक्टर ने कहा कि इन्हें घर ले जाइए और सेवा करिए। डॉक्टर ने कहा कि अब यह बचेंगे नहीं केवल दो-चार दिनों के मेहमान हैं।
परिवार वाले मुझे वापस घर लेते आए। वहां के डॉक्टर ने कहा कि किडनी इतनी खराब हो चुकी है कि अब इसका कोई इलाज नहीं है।
उस समय तक मेरी हालत बहुत ही खराब हो चुकी थी। मैं न चल पा रहा था और न ही बोल पा रहा था। मेरी स्थिति अचेत जैसी थी। जब मैं घर आया तो पडोसियों की भीड लग गयी। कई सारे मित्र, परिचित भी आ गए। उन्हीं में से एक पडोसी ने मेरे घरवालों से कहा कि यदि इन्हें दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा में दिखाया जाय तो बच सकते है। स्थिति देखकर कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि अब मैं स्वस्थ हो सकता हूँ। उपर से डॉक्टर ने तो दो-चार दिन की बात कह ही डाली थी। लेकिन उस पडोसी ने इतना विश्वास दिलाया कि घर वाले पनगरा जाने को राजी हो गए। वे पडोसी 2 साल पहले पनगरा में इलाज कराकर ठीक हो चुके थे।
उनकी बात पर 08-09-2013 को परिवार वाले मुझे लेकर पनगरा आ गए। यहां मैं 16 दिन तक भर्ती रहा। उस समय मैं होश में नहीं था। पनगरा अस्पताल में मुझे छठवें दिन से आराम मिलने लगा। मैं धीरे-धीरे चलने लगा। 16वें दिन जाते समय मैं अस्पताल से सडक तक खुद चलकर आराम से आया।
16 दिन बाद मैं 20 दिन पर दवा लेने आया। अब एक महीने में आकर दवा ले जाता हूँ। मैं अभी पूरी तरह स्वस्थ हूँ। उस डॉक्टर ने तो मुझे खत्म ही कर दिया था, पर आयुर्वेद की बदौलत मैं स्वस्थ हो गया। अब तो मैं सबसे कहता हूँ कि आयुर्वेदिक दवा ही लेनी चाहिए। एलोपैथिक दवा का साइड इफेक्ट है और मुझे भी साइड इफेक्ट ही हुआ था।
कभी फूर्ति से प्रशासनिक कार्यों को अंजाम देने वाले महाराष्ट के भण्डारा जिले के एसडीओ (उपजिलाधिकारी) विनय मोहन दरकंडे पर पिछले चार वर्षों से खुद का वजन भारी पडने लगा था। प्रशासनिक कार्यों में होने वाली भागदौड तो परेशानी का सबब बना ही था अपने दैनिक कार्यों को निपटाने में भी उन्हें मुश्किलें पेश आनी लगीं थीं। घर-बाहर दोनों जगह परेशान दरकंडे डॉक्टरों एवं दवाओं के पीछे भागने लगे। जितनी तेजी से वे दवाओं के पीछे भागते उससे तेज गति से वजन उनका पीछा करता रहता।
दरकंडे दवा कराते-कराते परेशान हो गए थे। तभी उनके एक डॉक्टर मित्र ने उन्हें चिकित्सा के लिए प्रख्यात डॉक्टर मदनगोपाल वाजपेयी के पास दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा, बॉंदा जाने की सलाह दी। दरकंडे ने अपने उस मित्र को साथ लिया और चले आए दिव्य चिकित्सा भवन। यहॉं की चिकित्सा से दरकंडे का वजन कम होने लगा। आज वे पहले से बहुत बेहतर महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसा ही रहा तो शीघ्र ही मैं पूर्व की भॉंति तेजी से अपने सभी कार्यों को पूरा करने लगूँगा।
बात अबसे लगभग चार वर्ष पहले की है। सामान्य कद-काठी के मालिक 53 वर्षीय दरकंडे का वजन अचानक बढने लगा और देखते-देखते 115 किलो तक जा पहुँचा। 5 फिट 2 इंच के दरकंडे का शरीर बेडौल नजर आने लगा। बढते वजन से उन्हें भारी परेशानी महसूस होने लगी। इस वजन का असर उनके कार्यों पर पडने लगा। वक्त बे वक्त उन्हें नींद सताने लगती। भण्डारा से शुरू हुआ दवा कराने का सिलसिला धीरे-धीरे मुम्बई होकर नागपुर तक जा पहुँचा। दरकंडे इतने परेशान हो चुके थे कि जहॉं कहीं से भी यह पता चलता कि इस दवा से या इस तरीके से वजन कम हो सकता है उन सभी दवाओं या तरीकों को आजमाते। पर कहीं से लाभ नहीं हो रहा था। वजन घटने को तैयार ही नहीं था। दवा खिलाने से कोई फायदा न होते देख मुम्बई एवं नागपुर के डॉक्टर्स ने तो कह दिया था कि ऑपरेशन करके ही इस पर काबू पाया जा सकता है। दरकंडे ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं थे। उन्हें डर था कि इससे उनकी बॉडी और बिगड जाएगी।
शारीरिक वजन को कम करने के चक्कर में उनके बैंक एकाउण्ट का वजन लगातार कम होता जा रहा था। अब तक वे लाखों रूपया खर्च कर चुके थे। उनकी इस परेशानी से परिचित उनके एक डॉक्टर मित्र ने उन्हें एक बार दिव्य चिकित्सा भवन जाने की सलाह दी। उनके परिचित वे डॉक्टर खुद भी यहॉं रहकर इलाज करा चुके हैं और यहां ठीक होने वाले रोगियों को नजदीक से देख चुके हैं। मित्र की सलाह पर दरकंडे अप्रैल 2013 में दिव्य चिकित्सा भवन आ गए। यहां उन्हें डॉ मदनगोपाल वाजपेयी ने देखा और भर्ती होने की सलाह दी। तब छुट्टियां न होने से वे भर्ती नहीं हुए और एक माह की दवा लेकर चले गए। उस एक माह की दवा से उनका वजन कम होना शुरू हो गया।
वजन कम होने से दिव्य चिकित्सा भवन के प्रति उनका विश्वास बढा। उन्होंने पुन 15 दिन की दवा ली और प्रशासनिक कार्यों से थोडे दिनों की छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया जिससे यहां भर्ती होकर इलाज करा सकें। उन्हें जब छुट्टी मिल गई तो 20-05-2013 को भर्ती हो गए। यहां रहकर दवा शुरू की तो उनके सेहत पर फर्क उन्हें साफ नजर आने लगा।
अभी उनका वजन 8 किलो कम हो चुका है। उनके शरीर में फूर्ति आनी शुरू हो गई है। अब नींद भी पहले जैसी नहीं सताती। अब उन्हें दिखने लगा है कि आने वाले दिनों में वे फिर पहले जैसी भागदौड करने लायक हो जायेंगे। यहां की दवा से वे पूरी तरह संतुष्ट हैं। उनका कहना है कि लोगों को यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि आयुर्वेदिक दवाएं देर से काम करती हैं। मैंने यहां आकर देख लिया है कि दवाएं कितनी असरकारी हैं। अब तो यही लगता है कि काश, पहले ही यहां आ गया होता तो इतनी परेशानी नहीं होती।
फतेहपुर जिले के नगर पंचायत बिन्दकी की चेयरमैन श्रीमती नीलम सोनी पांच महीनों से पेट दर्द से बुरी तरह परेशान थीं। कानपुर के नामी-गिरामी डॉक्टरों की दवा बेकार साबित हो रही थी। जल्दी राहते देने के लिए मशहूर एलोपैथिक दवाएं कारगर नहीं हो रही थीं तब उन्होंने उस आयुर्वेद का सहारा लिया जिसके बारे में कहा जाता है कि यह बहुत देर से असर करती है। आयुर्वेदिक चिकित्सालय दिव्य चिकित्सा भवन में मात्र एक सप्ताह की चिकित्सा ने उन्हें पेट दर्द से मुक्ति दिला दी और अब पूरी तरह सुकून से हैं।
46 वर्षीय श्रीमती नीलम पति मूलचन्द सोनी एक व्यवसायी हैं और पूरे बिन्दकी में जय गुरूदेव मंदिर वाले के नाम से पहचाने जाते हैं। नीलम को 5 महीने पहले पेट में तेज दर्द होने लगा। पेट दर्द से परेशान नीलम सोनी ने तुरन्त कानपुर के प्रसिद्ध् चिकित्सक डॉ आर एन द्विवेदी को दिखाया। डॉक्टर आर एन द्विवेदी की दवा से उन्हें फायदे की जगह नुकसान होने लगा। दवा खाते ही उन्हें उल्टी होने के साथ तबियत और बिगडने लगती। जब तबियत और खराब होने लगी तो उनके पति उन्हें एक कानपुर के ही एक दूसरे प्रसिद्ध डॉक्टर पी के माथुर के पास ले गए। पहले आर एन द्विवेदी जांच करा चुके थे फिर पी के माथुर ने भी जांच कराया। डॉक्टर माथुर ने जांच के बाद बताया कि लीवर में बाएं तरफ सूजन है। डॉ पी के माथुर की दवा से भी नीलम को कोई फायदा नहीं मिला। इसके बाद दूसरे डॉक्टरों को भी दिखाया गया लेकिन पेट दर्द खत्म नहीं हो रहा था।
इनकी परेशानी की जानकारी जब इनके एक परिचित होम्योपैथी के डॉक्टर मिश्रा को हुई तो उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा, बांदा जाने की सलाह दी। इसके बाद श्री एवं श्रीमती सोनी 25 जुलाई 2013 को पनगरा स्थित दिव्य चिकित्सा भवन आ गए। यहां डॉ मदनगोपाल वाजपेयी ने उन्हें देखकर पंचकर्म कराने के लिए एडमिट होने की सलाह दी। उस दिन एडमिट होने की तैयारी से न आने के कारण वे लोग रूके नहीं और वापस अपने घर बिन्दकी चले गए।
28 जुलाई को दुबारा आकर वे भर्ती हो गयीं। दिव्य चिकित्सा भवन में उनकी चिकित्सा 4 अगस्त तक चली। यहां आयुर्वेदिक दवाओं के साथ पंचकर्म हुआ। 5 अगस्त को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। यहां मात्र एक हफ्ते की दवा में उनका पेट दर्द पूरी तरह गायब हो गया। अब वे पूरी तरह ठीक हैं। यहां की चिकित्सा से आराम पाने के बाद उनका आयुर्वेद चिकित्सा के प्रति विश्वास बढा है। उनके पति श्री मूलचन्द का कहना है कि दिव्य चिकित्सा भवन ने वह कर दिखाया जो कानपुर महानगर के बडे-बडे अस्पताल नहीं कर पाए। वे कहते हैं कि यहां शान्ति का अनुभव होता है जबकि एलोपैथिक अस्पतालों में उलझन होती है। पति-पत्नी दोनों लोग पूरी तरह संतुष्ट हैं और कहते हैं कि पिछले पांच महीने से हम लोग डिस्टर्ब थे अब शान्ति मिल गई।
मैं डॉक्टर आनन्द श्रीवास्तव अशोक नगर, इलाहाबाद का निवासी हूँ। एमबीबीएस करने के बाद इलाहाबाद में ही प्रैक्टिस करता हूँ और आरोग्यम नाम से मेरा अपना अस्पताल है।
अब से एक वर्ष पहले की बात है हमारी माता जी जिनका नाम श्रीमती कलावती श्रीवास्तव है को किडनी में खराबी का पता चला। 76 वर्षीय अपनी माता का प्रारम्भिक इलाज मैंने खुद किया परन्तु बाद में एसजीपीजीआई लखनऊ में उन्हें दिखाया।
मैं उन्हें पीजीआई में ले तो जरूर गया पर एलोपैथिक की हकीकत जानता था। चूंकि मैं खुद एक एमबीबीएस डॉक्टर हूँ इसलिए यह अच्छी तरह पता था कि इस पैथी में किडनी की बीमारी का कोई पूर्ण इलाज नहीं है। इस पैथी में हम लोग बीपी और सुगर को मेंटेन करने के लिए कुछ दवाएं देते हैं। इसके साथ ही सोडियम, पोटैशियम कैसे बैलेन्स रहे इसका उपाय दवा से करते हैं। ऐसा इसलिए कि यदि यह सब मेंटेन रहेगा तो किडनी की प्राब्लम कुछ घटेगी।
इसी बेस पर पीजीआई में भी इलाज चलता रहा। हालांकि इलाज के दौरान भी क्रिटनीन का बढना जारी रहा। सच कहिए तो मुझे इसका रिजल्ट पहले से ही पता था इसलिए मैं जानता था एक दिन डायलिसिस करवाना ही पडेगा और मैं उस दिन के लिए पूरी तरह तैयार था। इसलिए धीरे-धीरे करके वह दिन आ गया जब डायलेसिस आवश्यक हो गयी। अबसे लगभग डेढ महीने पहले मेरी माताजी को पहली बार पीजीआई में ही डायलेसिस हुआ। सप्ताह में दो बार उनकी डायलेसिस करनी पडी। इस तरह से एक महीने के अन्दर कुल 8 बार उनकी डायलेसिस हुई।
इसी दौरान हमारे एक परिचित जो आयुष पैथी के डॉक्टर हैं ने हमें एक बार आयुर्वेद चिकित्सा अपनाने की सलाह दी। यह सलाह देते हुए उन्होंने हमें बांदा जिले के दिव्य चिकित्सा भवन का पता दिया और कहा कि वहां दिखाइए निश्चित ही लाभ मिलेगा। उनकी सलाह मानकर हम अपनी माता जी को लेकर 8वीं डायलेसिस के बाद तुरंत बांदा जिले के दिव्य चिकित्सा भवन पहुँचे।
7 जनवरी को वहां पर माता जी को एडमिट कर आयुर्वेदिक पद्धति से चिकित्सा शुरू हुई। जब हम लोग वहां पहुँचे थे तो उनका क्रिटनीन 7॰4 था। यह स्थिति डायलेसिस के तुरंत बाद की थी। अभी आज 23 जनवरी को क्रिटनी 5॰4 है परन्तु एक राहत है कि इन 17 दिनों में कोई डायलेसिस नहीं हुई।
यहां आकर पता चला कि आयुर्वेद में इसका इलाज है। यहीं पर मेरे बगल में रहने वाले एक मरीज का क्रिटनीन एक सप्ताह में ही 2 प्वाइंट घटा हुआ मैंने देखा।
डॉक्टर आनन्द श्रीवास्तव , अशोक नगर,, इलाहाबाद
मेरे पिता जी को आज से 5 साल पहले पैरों में जकडन, बुखार एवं घबराहट जैसी समस्या हुई थी। उस दौरान डॉक्टर ने उनकी जॉंच की तो बताया कि बीपी की समस्या है। उन्होंने दवा दी जिससे कुछ दिनों के लिए आराम हो गया परन्तु बाद में मैं बडे अस्पताल ले आया। वहॉं पर आर्थोपेडिक्स ने देखकर कहा कि सियाटिका है जबकि मेडिसिन के डॉक्टर ने बीपी की समस्या बताकर आरएफटी करवाने को कहा। आरएफटी की रिपोर्ट आयी तो उन्होंने किडनी फेल्योर की समस्या बताई और कहा कि यहॉं पर नेफ्रोलोजिस्ट नहीं है और आप दिल्ली रहते हैं तो दिल्ली ले जाइये। हम उन्हें दिल्ली ले आये और सफदरजंग हॉस्पिटल में नेफ्रोलोजिस्ट विभाग के हेड को दिखाया। करीब दो साल तक वहॉं इलाज चलता रहा, उस दौरान सीरम क्रिटनीन 2-1 से 3-2 के करीब था। इलाज निरन्तर चलता रहा। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण हमने डॉक्टर दुग्गल को दिखाया क्योंकि सुना था कि डॉक्टर दुग्गल गोल्ड मेडलिस्ट नेफ्रोलाजिस्ट हैं। उन्होंने रिपोर्ट देखी और वही दवाइयॉं जो सफदरजंग हॉस्पिटल के डॉक्टर ने प्रिस्क्राइब की थी वही लिखी और चलता रहा। उस समय सीरम क्रिटिनीस 3-5,3-2,3-7 तक रहता था। इसके बाद जनवरी 12 में हमने एक टेस्ट करवाया तो सी सीरम क्रिटिनीन 4-2,4-7 के करीब था हमने रिपोर्ट डॉक्टर को दिखाई तो डॉक्टर ने कुछ दवाइयॉं बदल दीं और इलाज चलता रहा। अप्रैल 2012 में टेस्ट करवाने पर पता चला कि सीरम क्रिटनीन 5-7 चला गया है और फिर एक महीने बाद टेस्ट करवाने पर 6-7 पाया गया।
हम घबरा गए क्योंकि डॉक्टर हर चेकअप के दौरान कहते थे कि अब तो डायलेसिस की जरुरत पडने वाली है, परन्तु सब कुछ ठीक चलने और कोई ऐसी विशेष समस्या न होने पर कुछ दवाऍं देते रहने के लिए कहा। हमारे एक जानने वाले मित्र जो गुजरात में रहते हैं उनको जब इस समस्या के बारे में बताया तो उन्होंने दिव्य चिकित्सा भवन का पता दिया और हमने यहॉं आकर डॉक्टर मदनगोपाल वाजपेयी जी को सार व़त्तान्त सुनाया। उन्होंने तुरन्त भर्ती होने को कहा और उसी दिन से इलाज शुरु करवाया। जब हमने भर्ती करवाया था तो इनका सीएम क्रिटिनीन 7-0 रक्तचाप 183 और ब्लड सुगर 142 आया था यहॉं आने के बाद चौथे हफ्ते में 4-2 पर क्रिटीनीन आ गया है। बीपी भी कन्टोल में है। चौथे हफ्ते के बाद डॉक्टर साहब ने डिस्चार्ज कर दिया। इस समय सब कुछ ठीक है।
हम दिव्य चिकित्सा भवन के समस्त कर्मचारी एवं डॉक्टर साहब का धन्यवाद् करते हैं जिन्होंने इन चार हफ्तों में मेरे पिताजी को डायलेसिस से बचा लिया।
सुबह के 5 बजे थे। मैं छत से सोकर नीचे आया तो देखा कि मेरे पिताजी गददा ओढकर सोये हुए थे। ये जुलाई 2013 के प्रथम सप्ता ह की बात है। मैंने गददा हटाया तो देखा कि उनका शरीर भयंकर रूप से गर्म था। थोडी देर बाद मैंने उन्हेंा घर में रखी एक दवा दे दी जो बच्चेर के बुखार के लिए आयी हुई थी। कुछ देर में बुखार हल्काह हो गया और मैं अपनी डयूटी पर चला गया। दोपहर को पता चला कि पुन: बुखार हो गया है। मैं स्कू ल से घर आया और अपने परिवारिक डॉक्टकर मनोज त्रिपाठी के पास पिता जी को ले गया। वहॉं जॉंच के बाद पता चला कि मलेरिया है। उसकी दवा उन्होंने दी परन्तुल अगली सुबह पुन: बुखार हो गया। पैरों में सूजन भी हो गयी। डॉ0 त्रिपाठी से सम्पर्क करने पर उन्होंघने कहीं और दिखाने की सलाह दी।
उनकी सलाह के बाद हम उन्हेंज हमीरपुर जिला अस्पकताल ले गए। वहॉं ब्लरड टेस्ट के साथ अल्टा साउण्डे हुआ। रिपोर्ट आने पर पता चला कि क्रिटनीन बढा हुआ है और दोनों किडनी में पथरी है। क्रिटनीन लेबल 3 से उपर होने की रिपोर्ट आयी। जिला अस्प ताल के डॉक्ट रों ने अगली सुबह कानपुर के लिए रेफर कर दिया मेरे पिताजी को। कानपुर रेफर करने की बात सुनकर मेरे पिता जी ने अपना धीरज खो दिया। वे यह मान बैठे कि अब उनकी जिन्दतगी शेष नहीं है। 72 वर्षीय पिता जी को इस तरह हम लोगों ने कभी नहीं देखा था।
हमीरपुर जिला अस्पेताल के बाद हम उन्हेंय कानपुर के रिजेन्सीन अस्पेताल में ले गए। वहॉं वे 14 दिनों तक भर्ती रहे। वहॉं एक बार फिर टेस्टि करवाये गए। रिजेन्सीत में जो भी टेस्टव हुआ उसकी रिपोर्ट हमें नहीं दी गयी। पूरी फाइल वहीं रख ली वहॉं के स्टायफ ने। रिपोर्ट के बारे में बिना कुछ बताए यह कहा गया कि डायलेसिस कराना होगा और कोई रास्तां न देख जीवन बचाने के लिए हमने डायलेसिस कराने का फैसला किया। वहॉं रहे कुल 14 दिनों में पिताजी की तीन बार डायलेसिस हुयी। तीसरी बार के बाद डॉक्टयर ने कहा कि दो-चार दिनों के लिए इन्हें घर ले जा सकते हैं। जरूरत पड्ने पर फिर डायलेसिस के लिए आना पडेगा।
डायलेसिस की बात जब हमारे पारिवारिक डॉक्टूर मनोज त्रिपाठी को पता चली तो उन्होंिने दिव्ये चिकित्साक भवन, पनगरा, बॉंदा जाकर पिताजी की बीमारी का इलाज आयुर्वेदिक चिकित्सा द्वारा कराने की बात कही। हम लोग पनगरा आ गए। जब पनगरा आए तो उनका क्रिटनीन 6 से ज्यारदा था। उन्हेंल भूख नहीं लग रही थी, पेशाब भी नहीं हो रहा था। पूरे शरीर में सूजन हो गयी थी। पहली बार हम सात दिन की दवा लेकर चले गए। दिव्यल चिकित्सा भवन की 7 दिन की चिकित्सा ने ही मेरे पिताजी का कायाकल्पय कर दिया। सूजन खत्मं हो गयी। पिताजी को बहुत आराम हो गया।
7 दिन बाद हम पुन: आए और 15 दिन की दवा ले गए। इन दिनों में पिता जी का वजन भी घटा। यहॉं आने से पहले वे 64 किलो के थे जो अब घटकर 52 किलो के रह गए। यहॉं की चिकित्सा के दौरान ही हम यहॉं का फायदा दिखाने के लिए पिताजी को रिजेन्सीर हास्पिटल ले गए। वहॉं के डॉक्ट र निर्भय कुमार ने शारीरिक स्थिति और रिपोर्ट देखकर आश्चपर्य व्य क्त किया। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी जल्दीो इतना बडा परिवर्तन हो सकता है।
तीसरी बार हम पुन: 26 अगस्ता को पनगरा आ गए। इस बार यहॉं के मुख्या चिकित्साक डॉक्ट र मदनगोपाल वाजपेयी ने एडमिट होने के लिए कहा। हमने पिताजी को एडमिट कर दिया। 02/09/2013 को पिताजी को डिस्चाएर्ज कर दिया गया। पिताजी की तबियत पूरी तरह ठीक है। अब उन्हें भूख सामान्यस ढंग से लग रही है।
दिव्य चिकित्सा भवन के चिकित्साक द्वारा निर्धारित पथ्यह और चिकित्साी लेते हुए पिताजी तेजी से पुराने दिनों की ओर लौट रहे हैं। 02/09/2013 को कराए गए जॉंच में उनका क्रिटनीन 1:4 पाया गया। किसी स्वरस्थह व्य/क्ति के क्रिटनीन के लेबल जैसा ही अब उनका किटनीन लेबल है। किडनी की पथरी भी धीरे धीरे पेशाब मार्ग से बाहर निकल रही है। रिपोर्ट में वह भी कम होती नजर आयी।
हम लोग बहुत खुश हैं। दिव्य चिकित्सा भवन की चिकित्साल ने बहुत जल्दी ही मेरे पिताजी को स्वुस्थ् कर दिया। मैं किडनी की बीमारी से परेशान सभी भाइयों एवं उनके परिजनों से अनुरोध करता हूँ कि वे इधर उधर न भटकें। बीमारी का पता चलते ही सीधे बॉंदा जिले में पनगरा स्थित दिव्य चिकित्साे भवन पहुँचकर इलाज कराऍं।
website designed developed by Divya Chikitsa Bhawan, Pangara, Banda